सुप्रीम कोर्ट उस याचिका पर सुनवाई करने के लिए शुक्रवार को सहमत हो गया, जिसमें सिर्फ चुनाव होने के आधार पर सीआरपीसी की धारा 144 के तहत जारी निषेधाज्ञा आदेशों को रद्द करने का अनुरोध किया गया है।शीर्ष अदालत उस कानूनी पहलू की जांच भी करेगी कि क्या जिला मजिस्ट्रेट एक नियमित मामले के रूप में चुनाव से पहले धारा 144 लागू कर सकते हैं?
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने यह निर्देश भी दिया कि सक्षम प्राधिकार चुनावों के बारे में लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से यात्रा या जनसभाएं आयोजित करने के लिए अनुमति मांगने वाली अर्जी पर तीन दिनों के अंदर निर्णय करे। शीर्ष अदालत सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय और निखिल डे की एक याचिका पर सुनवाई कर रही है।
याचिका में लोकसभा या विधानसभा चुनावों से पहले और परिणामों की घोषणा होने तक बैठकों, सभाओं, जुलूस या धरने को निषिद्ध करने के लिए मजिस्ट्रेट और राज्य सरकारों द्वारा धारा 144 लागू करने के लिए धड़ल्ले से आदेश जारी किए जाने पर रोक लगाने का अनुरोध किया गया है। धारा 144 उपद्रव की आशंका होने पर लागू की जाती है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने पीठ से कहा कि पिछले छह महीनों में निर्वाचन आयोग के चुनाव कार्यक्रम की घोषणा करने से लेकर चुनावों के समापन की पूरी अवधि तक धारा 144 लागू करने का आदेश धड़ल्ले से जारी किया जा रहा है। यह धारा चुनावों के दौरान हर तरह की सभाओं, बैठकों और प्रदर्शनों को निषिद्ध करती है। इस पर पीठ ने कहा कि इस तरह का आदेश कैसे जारी किया जा सकता है।
अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि शीर्ष अदालत की संविधान पीठ के तीन निर्णय हैं, जिनमें कहा गया है कि जब तक शांति भंग होने की प्रबल आशंका न हो, धारा 144 लागू करने का आदेश जारी नहीं किया जा सकता। उन्होंने राजस्थान में 16 मार्च को धारा 144 के तहत आदेश जारी किए जाने का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया है कि यह आदेश 16 मार्च से लेकर छह जून तक पूरे बाड़मेर में प्रभावी रहेगा।
भूषण ने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने पिछले साल के विधानसभा चुनाव के दौरान मतदाताओं के लोकतांत्रिक अधिकारों के बारे में जागरूक करने के लिए एक यात्रा की इजाजत लेने के वास्ते आवेदन दिया था। अधिकारियों को इस तरह के आवेदनों पर एक निर्धारित समय सीमा के भीतर निर्णय लेना चाहिए। पीठ ने इस विषय की सुनवाई दो हफ्ते बाद तय की है।