इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद अब लोगों की निगाहें स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और चुनाव आयोग की तरफ़ हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया से बीते क़रीब पांच साल के इलेक्टोरल बॉन्ड की जानकारी चुनाव आयोग को देने के लिए कहा है.
दिल्ली में छपने वाले अख़बारों में इसे पहले पन्ने पर जगह दी गई है.
इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि चुनाव आयोग के अधिकारियों को उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद संभवत: 13 मार्च तक चुनावी बॉन्ड्स के बारे में जानकारी मिल सकेगी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एसबीआई चुनाव आयोग को जानकारी मुहैया कराएगा और चुनाव आयोग इस जानकारी को 31 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करेगा.
चुनाव आयोग के एक अधिकारी ने कहा, “हमें अब तक कोर्ट का पूरा आदेश पढ़ने का मौक़ा नहीं मिल सका है लेकिन ये साफ़ है कि एसबीआई को उन लोगों के नाम बताने होंगे जिन्होंने इलेक्टोरल बॉन्ड्स खरीदे हैं. इसमें कई शंका नहीं है.”
हालांकि अख़बार लिखता है कि अब तक ये स्पष्ट नहीं है कि एसबीआई जो डेटा देगा, क्या वो उस तरीके से दिया होगा कि इससे बॉन्ड खरीदने वाले और वो बॉन्ड जिसे मिला, उस राजनीतिक दल के नाम का पता लग सके.
अधिकारी ने अख़बार को बताया, “अगर आसान तरीके से डेटा ना भी दिया जाए तो भी बॉन्ड खरीदने वाले और उसे भुनाने वाले दल के नाम का पता लगाना नामुमकिन नहीं है. इसके लिए थोड़ा वक्त निकाल कर मेहनत करनी होगी और कई ऐसे लोग हैं जो ये पता करने के लिए उत्सुक होंगे.”
सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई से कहा कि वो अपनी आधिकारिक शाखाओं से खरीदे गए सभी इलेक्टोरल बॉन्ड्स की जानकारी दे. इसमें बॉन्ड ख़रीदने की तारीख़, खरीदने वाले का नाम और बॉन्ड का मूल्य शामिल हैं.
बैंक से ये भी कहा गया है कि वो इस बात का विवरण दे कि किस राजनीतिक पार्टी ने कितने बॉन्ड भुनाए हैं. इसमें बॉन्ड भुनाने की तारीख और राशि का लेखाजोखा शामिल है.
अख़बार लिखता है कि एसबीआई के पास बॉन्ड खरीदने वाले हर व्यक्ति का आधार कार्ड और पैन कार्ड से जुड़ी जानकारी हैं.
चुनाव अधिकारी के अनुसार, अभी ये नहीं कहा जा सकता कि एसबीआई से मिली जानकारी को आयोग उसी तरह सार्वजनिक करेगा या फिर उसे लोगों की समझ के लिए आसान तरीके से पेश करेगा.
इलेक्टोरल बॉन्ड पर चुनाव आयोग ने कोर्ट में कहा था कि इससे पारदर्शिता नहीं बनी रहती.
2019 में कोर्ट में दिए एक हलफ़नामे में आयोग ने कहा था कि राजनीतिक फंडिंग से संबंधित क़ानूनों में किए गए बदलावों के पारदर्शिता पर “गंभीर परिणाम” होंगे.
क्या बोले पूर्व चुनाव आयुक्त
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई क़ुरैशी ने इसी मुद्दे पर इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख लिखा है.
उन्होंने कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत किया है और लिखा है कि 15 फवरवरी 2024 की तारीख को इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा.
कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को सूचना के अधिकार का उल्लंघन बताया है.
क़ुरैशी लिखते हैं कि कोर्ट ने सरकार के वकीलों के लगभग हर तर्क को कड़ी टिप्पणियों के साथ खारिज कर दिया और कहा कि “संविधान केवल इसलिए आंखें नहीं मूंद सकता कि इसके ग़लत इस्तेमाल की संभावना है. काले धन पर लगाम लगाने के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड एकमात्र आधार नहीं है.”
वो लिखते हैं कि इलेक्टोरल बॉन्ड कोई इकलौता कदम नहीं था जो सरकार ने उठाया था.
इसका रास्ता साफ़ करने के लिए 2017 के फ़ाइनेन्स एक्ट में कई क़ानूनों में संशोधन किए गए. इनमें भारतीय रिजर्व बैंक क़ानून, कंपनी एक्ट, इनकम टैक्स एक्ट 1961, रीप्रेज़ेन्टेशन ऑफ़ पीपल एक्ट और फ़ॉरेन कॉन्ट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट शामिल हैं.
वो समझाते हैं- कंपनियों के लिए पहले ये सीमा थी कि वो अपने मुनाफे़ का 7.5 फ़ीसदी हिस्सा ही दान कर सकते हैं, इसे हटा दिया गया जिससे अब वो अपने मुनाफे़ का 100 फ़ीसदी राजनीतिक पार्टी को दान कर सकते थे. इसके बाद नुक़सान में जा रही कंपनियां भी दान कर सकती थीं.
रीप्रेज़ेन्टेशन ऑफ़ पीपल एक्ट 1951 के तहत राजनीति दल विदेशी स्रोतों से दान नहीं ले सकते.
फ़ॉरेन कॉन्ट्रीब्यूशन रेगुलेशन एक्ट 2010 के तहत राजनीतिक दल, दलों के अधिकारी, उम्मीदवार, विधानसभा सदस्यों, सांसदों के विदेश से दान लेने पर मनाही है.
द हिंदू ने इलेक्टोरल बॉन्ड पर पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त नवीन चावला का बयान छापा है.
चावला ने कहा है कि अगर इस पूरी स्कीम को पारदर्शिता की दलील देते हुए लाया भी गया था तो इसका असर उलटा पड़ा.
उनका कहना है, “इसमें नाम छिपा सकने की संभावना इतनी अधिक थी कि राजनीतिक दलों और उन्हें दान देने वालों को इससे बहुत फायदा हुआ. इससे पारदर्शिता तो नहीं बढ़ी बल्कि इसका उसर एकदम उल्टा हुआ.”
“चुनाव आयोग बीते 25 सालों से राजनीतिक दलों की फंडिंग और उनके खर्चों में पारदर्शिता लाने को लेकर सरकार को प्रस्ताव देता रहा है. मुझे उम्मीद है कि कोर्ट इस मुद्दे पर भी नज़र डालेगी.”
एक अन्य पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा, “2017 में जब योजना को फ़ाइनेंस बिल के हिस्से के रूप में लाया गया था, उस वक्त उसे लेकर चुनाव आयोग ने जो चिंताएं जताई थीं, कोर्ट ने अपने फ़ैसले में उन सभी को संबोधित किया है.”
व्हीलचेयर नहीं मिलने से बुज़ुर्ग की मौत
टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी एक ख़बर के अनुसार, एयरपोर्ट पर व्हीलचेयर ना मिलने पर 80 साल के एक बुज़ुर्ग की बाद में मौत हो गई है.
ये मामला मुंबई का है.
न्यूयॉर्क से मुंबई आ रहे एक बुजुर्ग दंपति ने एयर इंडिया में टिकट कराया था. दोनों ने अपने लिए दो व्हीलचेयर की भी गुजारिश की थी.
अख़बार लिखता है कि मुंबई एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद उन्हें व्हीलचेयर नहीं मिली, जिसके कारण बुज़ुर्ग एयरपोर्ट पर ही इमीग्रेशन काउंटर के पास गिर गए. बाद में सोमवार को उनका देहांत हो गया.
सूत्र के हवाले से अख़बार लिखता है, “व्हीलचेयर की कमी के कारण इस दंपति के लिए एक ही व्हीलचेयर एसिस्टेंट आए थे. ऐसे में बुज़ुर्ग महिला व्हीलचेयर पर बैठीं और उनके पति उनसे साथ चलने लगे.”
“वो इमीग्रेशन के एरिया तक पहुंचने के लिए कम से कम डेढ़ किलोमीटर तक चले होंगे, जहां उन्हें अचानक दिल का दौरा पड़ा और वो गिर गए. उन्हें मुंबई एयरपोर्ट में बने मेडिकल सेंटर ले जाने के बाद नानावती अस्पताल ले जाया गया.”
नाम ना बताने की शर्त पर एक सूत्र ने अख़बार को बताया, “इस फ्लाइट में 32 लोग थे जिन्होंने व्हीलचेयर के लिए गुजारिश की थी. लेकिन जब विमान उतरा तो वहां उनकी मदद के लिए केवल 15 व्हीलचेयर एसिस्टेंट पहुंचे थे.”
वहीं एयर इंडिया के एक प्रवक्ता ने कहा, “व्हीलचेयर की भारी मांग के कारण हमने यात्रियों से गुज़ारिश की कि वो सुविधा की व्यवस्था किए जाने तक थोड़ा इंतजार करें. लेकिन बुज़ुर्ग ने अपनी पत्नी के साथ पैदल चलने का विकल्प चुना.”
मणिपुर में नहीं थम रही हिंसा, कलेक्टर के दफ्तर पर भीड़ ने किया हमला
मणिपुर में बीते साल मई में शुरु हुई जातीय हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है. गुरुवार को यहां के चूराचांदपुर इलाक़े में जिला कलेक्टर का दफ्तर इस हिंसा की चपेट मे आ गया.
हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार गुरुवार देर रात चूराचांदपुर में एक भीड़ ने उस सरकारी परिसर पर हमला किया जहां पुलिस अधीक्षक और जिला कलेक्टर के कार्यालय हैं. इसे यहां मिनी सचिवालय कहा जाता है.
भीड़ को रोकने के लिए सुरक्षाबलों ने गोलियां चलाई. हिंसा में अब तक दो लोगों की मौत हुई है और कई लोग घायल हैं.
अख़बार लिखता है कि इस मामले की जानकारी रखने वालों ने बताया है कि परिसर में मौजूद गुस्साई भीड़ ने सुरक्षाबलों की गाड़ियों और कलेक्टर के घर को आग के हवाले कर दिया.
हिंसा को देखते हुए राज्य सरकार ने चुराचांदपुर में मोबाइल डेटा सर्विस को सेवाओं को पांच दिनों के लिए बंद कर दिया है.
जिला अस्पताल के एक अधिकारी के हवाले से अख़बार ने लिखा है, “दो लोगों की मौत गोली लगने से हुई है जबकि एक दर्जन से अधिक लोग घायल हैं.”
मामला ये है कि यहां के आदिवासी कुकी समुदाय से ताल्लुक रखने वाले एक हेड कॉन्स्टेबल को बीते दिनों निलंबित किया गया था.
पुलिस का कहना है कि इस हेड कॉन्स्टेबल का एक वीडियो “हथियारबंद लोगों” और “गांव के वॉलेन्टियर्स” के साथ सोशल मीडिया पर देखा गया था, जिसके बाद “अनुशासित पुलिस बल के सदस्य के रूप में गंभीर मिसकंडक्ट” के लिए उन्हें निलंबित कर दिया गया.
इसकी ख़बर आने के बाद लोगों की एक बड़ी भीड़ एसपी के कार्यालय के बाहर इकट्ठा हो गई और पत्थरबाज़ी करने लगी. पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की जिसके बाद हिंसा शुरू हो गई.
मणिपुर पुलिस का कहना है कि भीड़ में कम से कम 300 से 400 लोग थे.
एक आम नागरिक के हवाले से अख़बार ने लिखा है कि झड़प और हिंसा आधी रात तक जारी रही, जिसके बाद इलाक़े में सुरक्षाबलों की भारी तैनाती की गई.