LMG का 1 करोड़ में सौदा, MLA की हत्या की साजिश… जब मुख्तार अंसारी ने हिला दी थी मुलायम सरकार

बाहुबली, सांसद, विधायक, नेता, माफिया, गैंगस्टर से लेकर मोस्ट वॉन्टेड क्रिमिनल तक… कई नाम, कई किरदार और कई संबोधन, लेकिन करतूत आतंक. लोगों के बीच दहशत फैलाकर अपना रसूख कायम करने वाले सफेदपोश अपराधियों की फेहरिस्त बहुत लंबी है.

इनमें कई नाम ऐसे हैं, जिनकी एक जमाने में तूती बोलती थी. पुलिस, प्रशासन से लेकर सरकार तक उनकी जेब में होते थे. वो जो चाहते, जैसे चाहते वैसे करते. डर के मारे लोग उनकी खिदमत में लगे रहते. ऐसे ही बाहुबलियों में मुख्तार अंसारी का नाम भी लिया जाता था, जो आज सलाखों के पीछे दयनीय जिंदगी जी रहा है.

गैंगस्टर मुख्तार अंसारी के खिलाफ करीब 65 केस दर्ज हैं. उसके सिर पर आईपीसी की वो सारी धाराएं है, जिन्हें संगीन माना जाता है. इनमें हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण, धोखाधड़ी, गुंडा एक्ट, आर्म्स एक्ट, गैंगस्टर एक्ट, सीएलए एक्ट से लेकर एनएसए तक शामिल है. इन सभी केसों में एक-एक करके उसे सजा हो रही है. इसी क्रम में बुधवार को उसे फर्जी शस्त्र लाइसेंस से जुड़े एक मामले में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. वाराणसी की एमपी एमएलए कोर्ट ने 36 साल पुराने इस मामले में दोषी करार देते हुए उम्रकैद के साथ दो लाख रुपए का जुर्माना भी लगाया है.

10 जून 1987 को मुख्तार अंसारी ने एक दोनाली बंदूक के लाइसेंस के लिए गाजीपुर जिला मजिस्ट्रेट के यहां प्रार्थना पत्र दिया था. जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक के फर्जी हस्ताक्षर से शस्त्र लाइसेंस प्राप्त कर लिया था. फर्जीवाड़ा उजागर होने के बाद 4 दिसंबर 1990 को गाजीपुर के मुहम्मदाबाद थाने में केस दर्ज कराया गया था. जांच के बाद तत्कालीन आयुध लिपिक गौरी शंकर श्रीवास्तव और मुख्तार के खिलाफ साल 1997 में चार्जशीट दाखिल की गई थी. लेकिन गौरी शंकर की मौत हो जाने की वजह से उसके खिलाफ केस 18 अगस्त 2021 को समाप्त कर दिया गया था.

यहां दिलचस्प बात ये है कि मुख्तार अंसारी को 36 साल पुराने एक दोनाली बंदूक के फर्जी लाइसेंस के मामले में उम्रकैद की सजा हुई है. लेकिन एक बहुत ही खौफनाक और अपने में समय में सबसे चर्चित मामले में उसके खिलाफ केस ही खारिज कर दिया गया था. आलम ये था कि गैंगस्टर के खिलाफ एलएमजी जैसे खतरनाक हथियार खरीदने से संबंधित केस दर्ज कराने और उस पर पोटा लगाने वाले पुलिस अधिकारी को महकमा छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया था. उस वक्त के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने एक माफिया के लिए पुलिस विभाग को ताश के पत्तों की तरह फेट दिया था.

जी हां, हम मुख्तार अंसारी और पूर्व डीएसपी शैलेंद्र सिंह के बारे में बात कर रहे हैं. बात साल 2004 की है. पूर्व डीएसपी शैलेंद्र सिंह वाराणसी में एसटीएफ चीफ थे. उनको वहां माफिया मुख्तार अंसारी और बीजेपी नेता कृष्णानंद राय के बीच होने वाले गैंगवार पर नजर रखने के लिए भेजा गया था. इस बारे में शैलेंद्र सिंह ने एक इंटरव्यू में बताया था, ”मुख्तार अंसारी और कृष्णानंद राय पर नजर बनाए रखने की जिम्मेदारी एसटीएफ को दी गई थी. ये दोनों पूर्वांचल से आते थे, लेकिन जानी दुश्मन थे और मैं भी पूर्वांचल चंदौली का रहने वाला हूं. ऐसे में मुझे दोनों पर निगरानी रखने के लिए भेजा गया.”

साल 2002 में कृष्णानंद राय पांच बार के विधायक रहे मुख्तार अंसारी को हराकर एमएलए बने थे. ये बात उसे रास नहीं आ रही थी. वो उन्हें मारकर अपने रास्ते से हटाना चाहता था. यही वजह है कि दोनों के बीच अक्सर गैंगवार होती रहती थी. उन पर नजर रखने के लिए शैलेंद्र सिंह उनके फोन टेप करने लगे. एक दिन मुख्तार अंसारी की फोन पर हुई बातचीत सुनकर वो सन्न रह गए. माफिया किसी से एलएमजी यानी लाइट मशीन गन खरीदने की बात कर रहा था. वो उससे कह रहा था कि किसी भी कीमत पर उसे एलएमजी चाहिए. वो इससे कृष्णानंद राय की हत्या करना चाहता था.

 दरअसल, कृष्णानंद बुलेट प्रूफ कार में चलते थे. वो चाहकर भी उनको मार नहीं पा रहा था. साल 2003 में उसने जानलेवा हमला किया, लेकिन कार की वजह से वो बच गए. पुलिस ने जब पता किया तो इंडियन आर्मी के एक भगोड़े बाबूलाल यादव का नाम सामने आया, जो मुख्तार को एलएमजी बेंच रहा था. दोनों के बीच सौदा एक करोड़ रुपए में तय हो गया. शैलेंद्र सिंह ने तुरंत अपने आलाधिकारियों को इस बारे में सूचित किया. उस वक्त वाराणसी के तत्कालीन एसपी आरके विश्वकर्मा (वर्तमान में योगी सरकार में मुख्य सूचना आयुक्त, 1988 बैच के आईपीएस) ये बात सुनकर परेशान हो उठे.

आईपीएस अधिकारी आरके विश्वकर्मा को पता था कि हर हाल में लाइट मशीन गन को मुख्तार अंसारी के पास पहुंचने से पहले बरामद करना है, क्योंकि यदि वो एक बार मोहम्मदाबाद स्थित उसके घर में पहुंच गई तो बरामद करना असंभव हो जाएगा. इसलिए डिलिवरी से पहले 24 घंटे के अंदर बरामदगी करनी थी. उन्होंने इसकी जिम्मेदारी शैलेंद्र सिंह को दे दी. उनके नेतृत्व में एक टीम का गठन किया गया, जिसमें इंस्पेक्टर अजय चतुर्वेदी भी शामिल थे. इसके बाद पुलिस ने तत्काल ऑपरेशन लांच किया. बाबू लाल यादव को उठा लिया गया. उससे पूछताछ में पता कि एलएमजी तो उसके मामा के पास है.

बाबू लाल यादव का मामा मुख्तार अंसारी का पुराना साथी था. पुलिस के लिए अब एलएमजी बरामद करना मुश्किल लग रहा था. लेकिन हिम्मत और जोश से लबरेज उस टीम ने किसी तरह से जान पर खेलकर उस खतरनाक हथियार को बरामद कर लिया. इसके बारे में शैलेंद्र सिंह ने बताया था, “मुख्तार अंसारी हर हाल में कृष्णानंद राय को मार देना चाहता था. उसे लग रहा था कि उनकी बुलेट प्रूफ गाड़ी सबसे बड़ी अड़चन है. एके-47 या उसके राइफल से उन्हें मारना संभव नहीं था. ऐसे में अपने लोगों से बातचीत में उसने हर हाल में उस लाइट मशीन गन को लेने की बात कही थी. लगभग ले चुका था.”

 मुख्तार अंसारी की फोन रिकॉर्डिंग और एलएमजी बरामदगी ने पुलिस टीम का हौसला बढ़ा दिया था. सबको लग रहा था कि अब उसके दिन लद गए. क्योंकि इतने संगीन अपराध में उसे सख्त से सख्त सजा होनी तय थी. पुलिस ने आर्म्स एक्ट के साथ पोटा भी लगा दिया था. लेकिन तब तक ये बात मुख्तार अंसारी को पता चल गई थी. वो उस समय न सिर्फ बाहुबली नेता था, बल्कि सरकार भी उसके बिना नहीं चल सकती थी. उसने बहुजन समाज पार्टी को तोड़कर समाजवादी पार्टी की सरकार बनवाई थी. मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री थे. ऐसे में उसने मुलायम से बोलकर ये केस ही रद्द करा दिया.

यहां तक कि रातोरात आईजी बनारस, डीआईजी, एसपी सहित एक दर्जन बड़े अधिकारियों के तबादले कर दिए गए. वाराणसी में मौजूद एसटीएफ की यूनिट को वापस लखनऊ बुला लिया गया. डीएसपी शैलेंद्र सिंह पर इस केस को खत्म करने का दबाव बनाए जाने लगा. लेकिन उनके साथ मुश्किल ये कि उन्होंने केस दर्ज कराया था. अब वो उसे किस तरह से वापस ले. इसके बाद अलग-अलग तरीके से उनको प्रताड़ित किया गया. अधिकारी कहते थे कि मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव उनसे काफी नाराज हैं. उन्होंने कहा कि वो खुद मुख्यमंत्री से मिलकर अपनी बात रखना चाहते हैं. लेकिन ऐसा नहीं हुआ.

अंतिम में भयंकर दबाव में बीच शैलेंद्र सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद उनके खिलाफ कई सारे फर्जी केस दर्ज किए गए. विभागीय जांच बैठा दी गई. उनको गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया. उनके टीम के इंस्पेक्टर अजय चतुर्वेदी पर भी जांच बिठाई गई, जो उनके रिटायरमेंट के बाद भी चलती रही. यहां तक कि 17 वर्षों तक सुनियोजित तरीके उन्हें प्रताड़ित किया गया. बीच में कई बार सरकार बदली लेकिन उनकी हालत जस के तस रही. लेकिन योगी सरकार के आने के बाद 6 मार्च 2021 को शैलेंद्र सिंह के खिलाफ दर्ज किए गए सभी केस कोर्ट के आदेश के बाद वापस ले लिए गए.

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