सुप्रीम कोर्ट ने ED के काम करने के तरीके पर सवाल उठाया, कहा- ‘आप इस तरह किसी को…’

सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय यानी ED के काम करने के उस तरीके पर सवाल उठाया है, जिसके कारण आरोपी को लंबे समय तक जेल से जमानत नहीं मिल पाती. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि ED किसी व्यक्ति को बिना सुनवाई के अनिश्चित समय तक जेल में नहीं रख सकती है.

सुप्रीम कोर्ट का ये बयान 20 मार्च को आया है. जब कोर्ट में झारखंड के अवैध खनन मामले से जुड़े आरोपी प्रेम प्रकाश की जमानत याचिका पर सुनवाई चल रही थी.

प्रेम प्रकाश पर अवैध खनन मामले में झारखंड के पूर्व CM हेमंत सोरेन के साथ शामिल होने का आरोप है. हेमंत सोरेन को ED ने मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में गिरफ्तार किया है और फिलहाल वो जेल में हैं. इस केस में गिरफ्तार प्रेम प्रकाश को पिछले साल जनवरी में झारखंड हाई कोर्ट ने जमानत देने से इनकार कर दिया था. इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया.

‘गिरफ्तारी के बाद ट्रायल शुरू करना जरूरी’

प्रेम प्रकाश की याचिका पर जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने सुनवाई शुरू की. बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस खन्ना ने ED की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (ASG) एसवी राजू से कहा,

“डिफ़ॉल्ट जमानत का मकसद है कि आप जांच पूरी होने तक गिरफ्तारी नहीं करते हैं. आप ये नहीं कह सकते कि मुकदमा तब तक शुरू नहीं होगा, जब तक जांच पूरी नहीं हो जाती. आप लगातार सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल नहीं कर सकते कि व्यक्ति को बिना मुकदमे के जेल में रहना पड़े. मौजूदा मामले में व्यक्ति 18 महीनों से जेल में है. जब आप किसी आरोपी को गिरफ्तार करते हैं, तो मुकदमा शुरू करना होता है.”

मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने नोट किया कि प्रेम प्रकाश 18 महीने से जेल में हैं और ये जमानत का स्पष्ट केस है. बेंच ने जब यही सवाल ASG एसवी राजू से किया, तो उन्होंने सबूतों से छेड़छाड़ का हवाला दिया. इस पर जस्टिस खन्ना ने कहा,

“अगर वो (प्रेम प्रकाश) ऐसा कुछ करते हैं, तो आप हमारे पास आएं.”

‘जमानत का अधिकार संविधान देता है’

कोर्ट ने कहा कि जमानत का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा) और PMLA (प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट) के सेक्शन 45 से आता है. इस सेक्शन 45 के मुताबिक मनी लॉन्ड्रिंग मामले में किसी आरोपी को जमानत तभी दी जा सकती है, जब दो शर्तें पूरी हों. एक शर्त ये कि अगर कोर्ट पहली नज़र में इस बात से संतुष्ट हो कि आरोपी ने अपराध नहीं किया है और दूसरी शर्त ये कि आरोपी के जमानत पर रहते हुए अपराध करने की संभावना नहीं है.

जस्टिस खन्ना ने कहा,

“इस मामले में PMLA के सेक्शन 45 के तहत जमानत पर रिहाई का अधिकार नहीं छीना जा सकता है. अगर अनुचित कारावास है, तो कोर्ट जमानत दे सकती है और PMLA का सेक्शन 45 इसमें बाधा नहीं है क्योंकि रिहाई का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 से आता है.”

फिलहाल प्रेम प्रकाश की जमानत याचिका वाले मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल तक स्थगित कर दी है. अगली सुनवाई में कोर्ट ये तय करेगा कि उन्हें अंतरिम जमानत दी जाए या नहीं. कोर्ट ने ED को इसमें कानूनी मुद्दों पर जवाब देने का भी निर्देश दिया.

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